Nature of the Indian Constitution: भारतीय संविधान की प्रकृति क्लास नोट्स (Make Complete Notes Class 7,8,9) | UPSCSITE

Nature of the Indian Constitution Complete Notes For UPSC & PCS : भारतीय संविधान की प्रकृति क्लास नोट्स

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Nature of the Indian Constitution: भारतीय संविधान की प्रकृति

Class 7. भारतीय संविधान की प्रकृति

भारतीय संविधान में संघात्मक एवं एकात्मक दोनों लक्षण स्पष्ट हैं।

संघात्मक लक्षण

~लिखित संविधान एवं संविधान की सर्वोच्चता। 

~संविधान संशोधन की प्रक्रिया की जटिलता ।

~संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन ।

~स्वतंत्र न्यायपालिकां तथा न्यायपालिका का कार्यपालिका तथा विधानपालिका पर पुनरावलोकन का अधिकार ।

एकात्मक लक्षण

~राज्यों में केन्द्र द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति संबंधी प्रावधान। 

~आपातकालीन स्थिति में संसद की विधि निर्माण की शक्ति से संबंधित प्रावधान।

~नये राज्यों के गठन, नाम तथा सीमा परिवर्तन संबंधी संसद की शक्ति।

~राज्यों में राष्ट्रपति शासन की स्थिति में केन्द्र सरकार के अधिकार।

विभिन्न विचार:

डॉ. भीमराव अम्बेडकर – “यह समय और परिस्थिति की मांग के अनुसार एकात्मक और संघात्मक हो सकता है।”

हवीयर- “भारत का संविधान अर्द्धसंघीय है। “

उच्चतम न्यायालय- “भारत का संविधान संघीय नहीं है, यद्यपि इसमें कई संघीय लक्षण पाये जाते हैं। “

आस्टिन- ” भारत का संविधान सहकारी परिसंघीय संविधान है। “

Class 8. भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना

~उद्देशिका को “संविधान की कुंजी” कहा जाता है।

~उद्देशिका के अनुसार संविधान में निहित समस्त शक्ति का स्रोत भारत के लोग हैं और वह सर्वोच्च सम्प्रभुता धारण करती है।

~इस उद्देशिका में 42वें संशोधन (1976) द्वारा पहले पैरा में “समाजवादी और पंथनिरपेक्ष” अंतः स्थापित किए गए एवं छठे पैरा में ” और अखंडता ” शब्द जोड़ा गया।

~बेरूबारी यूनियनवाद (1960) में उच्चतम न्यायालय ने उद्देशिका को संविधान का अंग मानने से इंकार कर दिया। इसलिए संसद इसमें संशोधन नहीं कर सकती।

~केशवानंद भारती बनाम केरल राज्यवाद (1973) में उच्चतम न्यायालय ने उद्देशिका को संविधान का अंग माना। अतः उद्देशिका में संशोधन हो सकता है, किन्तु उसके मूल ढांचा किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

Class 9. संघ का राज्यक्षेत्र और राज्यों का निर्माण

~भारत राज्यों का संघ है। कोई भी राज्य इकाई भारत से अलग होने के लिए स्वतंत्र नहीं है।

~संविधान के अनुच्छेद 2 के अंतर्गत संसद को यह अधिकार है कि वह विधि बनाकर संघ में नये राज्यों को प्रवेश दे सकती है या नये राज्यों की स्थापना कर सकती है। नये राज्यों का प्रवेश या उसकी स्थापना ऐसे निर्बन्धनों और शर्तों के अनुसार की जायेगी जिन्हें संसद उचित समझे।

~अनुच्छेद 3 में नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन का उपबन्ध है। इस अनुच्छेद का संसद ने अब तक कई बार प्रयोग किया है।

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