Parliament : संसद | UPSC Prelims Notes (Make Complete Notes Class 18) | UPSCSITE

Parliament Complete Notes For UPSC & PCS : संसद | UPSC Prelims Notes (Make Complete Notes Class 18)

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Parliament : संसद

18. संसद

~अनुच्छेद 79 के अनुसार सदन राष्ट्रपति, राज्यसभा एवं लोकसभा से मिलकर बनता है।

~संसद के उच्च सदन को राज्यसभा एवं निम्न सदन को लोकसभा कहते हैं।

राज्यसभा (Parliament : संसद)

~इसका गठन 3 अप्रैल 1952 को किया गया एवं इसकी प्रथम बैठक 13 मई, 1952 को हुई । राज्यसभा मंत्रिपरिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।

~अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 है, जिसमें 233 का चुनाव राज्यों से और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीति किये जाते हैं।

~इन सदस्यों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति के अनुसार संघ के विभिन्न राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।

~राज्यसभा के सदस्य के लिए जरूरी है कि उसका नाम उस राज्य के किसी निर्वाचन क्षेत्र की सूची से हो, जिस राज्य से वह राज्यसभा का चुनाव लड़ना चाहता है, किन्तु नवीनतम संशोधन के द्वारा यह अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है।

Parliament : संसद

~राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जो कभी भंग नहीं होता। इनके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है, किन्तु इसके एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेवानिवृत्त जाते हैं।

~राज्यसभा की सदस्यता के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 30 वर्ष है।

~भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।

~राष्ट्रपति वर्ष में कम से कम दो बार राज्यसभा का अधिवेशन आहुत करता है। राज्यसभा की अंतिम बैठक और अगले सत्र की प्रथम बैठक में छः माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए।

Parliament : संसद

~राज्यसभा धन एवं वित्त विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती है और न ही संशोधन कर सकती है। सिर्फ सुझाव दे सकती है। सुझाव मानना या न मानना लोकसभा पर निर्भर करता है। धन विधेयक को राज्यसभा में भेजने के बाद 14 दिन के अन्दर न लौटाने की स्थिति में भी पारित माना जाता है।

~अनुच्छेद 249 के अनुसार केवल राज्यसभा सदन में उपस्थित एवं मतदान करने वाले कुल सदस्य के दो तिहाई मत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय हित का विषय घोषित कर सकता है। राज्यसभा अब तक इस अधिकार का प्रयोग 1952 एवं 1986 में दो बार किया है।

~अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्यसभा उपस्थित या मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा अखिल भारतीय सेवा सृजन कर सकता है।

~वैसे राज्य जिनका राज्यसभा में प्रतिनिधित्व नहीं है- चण्डीगढ़, अंडमान-निकोबार, दमन व दीव दादरा-नगर हवेली एवं लक्षद्वीप है।

लोकसभा (Parliament : संसद)

~प्रथम लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ था और इसकी पहली बैठक 13 मई 1952 को हुई थी। 

~मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निर्धारित की गयी थी, परंतु 31वें संशोधन (1974) द्वारा इसकी संख्या बढ़कर 547 और गोवा दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम 1987 द्वारा इसकी संख्या बढ़ाकर 552 कर दी गयी। इनमें 530 का निर्वाचन राज्य क्षेत्र से 20 का निर्वाचन संघ राज्य क्षेत्र से और दो का राष्ट्रपति द्वारा मनोनयन होता था।

~वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 545 है। इनमें 530 सदस्यों का निर्वाचन राज्य क्षेत्रों से, 13 सदस्यों का निर्वाचन संघ राज्य क्षेत्र से और 2 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा होता है। 

~84वां संविधान संशोधन अधिनियम 2001 के अनुसार 2026 तक लोकसभा एवं विधान सभाओं की सीटों की संख्या यथावत रहेगी।

~लोकसभा सदस्यों का चुनाव वयस्क (18 वर्ष 61वें संविधान संशोधन) मतदाता द्वारा गुप्त विधि से होता है। 

Parliament : संसद

~लोकसभा एवं विधान सभाओं में सीटों के आवंटन एवं क्षेत्रों की सीमा के निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है। अब तक चार परिसीमन आयोग का गठन किया जा चुका है। पहला 1952, दूसरा 1962, तीसरा 1973 एवं चौथा 2002 (अध्यक्ष न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह ) 

~लोकसभा में सामान्य / आम निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 410, अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 85 और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 48 है।

~चौथा परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया है जिसकी मंजूरी केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 10 जनवरी 2008 को मिली।

~संविधान में परिसीमन आयोग के संबंध में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया गया है। अनुच्छेद 82 में प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोकसभा एवं राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन एवं पुनः समायोजन का कार्य संसद द्वारा विहित अधिकारी द्वारा किये जाने का प्रावधान है। किन्तु तृतीय परिसीमन के बाद यह अनियमित हो गया, कारण 42वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 82 में संशोधन कर वर्ष 2000 तक इस पर रोक लगा दिया गया। 

~परिसीमन आयोग में देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित सभी राज्य व केन्द्रशासित प्रदेशों के निर्वाचन आयुक्त इस आयोग के सदस्य हैं।

Parliament : संसद

~वैसे राज्य जिनका परिसीमन नहीं हो सका – असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड एवं झारखंड । पूर्वोत्तर के चारों राज्यों में स्थानीय विरोध एवं अदालतों के स्थगन आदेश के कारण परिसीमन नहीं हो सका, जबकि झारखंड में सरकारी नीति के विपरीत आरक्षित सीटें कम होने के कारण यह परिसीमन पूरा नहीं हो सका ।

~लोकसभा का अधिकतम कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किन्तु प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति कार्यकाल के मध्य में भी संसद भंग कर सकता है। ऐसी घटना अब तक आठ बार हो चुकी है- 1970, 1977, 1979, 1984, 1989, 1991, 1997 तथा अप्रैल 1999।

~आपातकाल की घोषणा लागू होने पर संसद विधि द्वारा लोकसभा के कार्यकाल दो बार एक-एक वर्ष के लिए बढ़ा सकता है, किंतु आपात काल की समाप्ति के बाद लोकसभा का कार्यकाल 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। 

~कैबिनेट मंत्रियों में सबसे बड़ा कार्यकाल जगजीवन राम (32 वर्ष) का रहा है।

~लोकसभा एवं राज्यसभा की गणपूर्ति (कोरम) कुल सदस्य संख्या का 10वां भाग होती है। 

लोकसभा के सदस्यों के लिए अनिवार्य योग्यताएँ (Parliament : संसद)

~वह भारत का नागरिक हो 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। 

~वह पागल या दिवालिया घोषित न हो।

~वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद न धारण करता हो ।

लोकसभा के पदाधिकारी (Parliament : संसद)

~अस्थायी (प्रोटेम ) अध्यक्ष – आम चुनाव के पश्चात् जब लोकसभा पहली बार बैठक के लिए आमंत्रित की जाती है। तो राष्ट्रपति लोकसभा के किसी वरिष्ठतम सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करता है, जिससे कि नये सदस्य शपथ आदि ले सकें और अपना अध्यक्ष चुन सकें ।

~अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा स्वयं ही अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का निर्वाचन करती है, जिसका कार्यकाल लोकसभा के जीवन पर्यन्त होता है । किन्तु इससे पूर्व भी वे निम्न विधि द्वारा पद से हट सकते हैं- 

1. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को और उपाध्यक्ष, अध्यक्ष को त्याग-पत्र देकर |

2. लोकसभा के तत्कालीन उपस्थित सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा लोकसभा के अध्यक्ष को जा सकता है।

ऐसे संकल्प प्रस्तावित करने के आशय की सूचना कम से कम उन्हें 14 दिन पूर्व देनी होगी। यह प्रस्ताव पहली बार 18 दिसम्बर 1954 को लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर के विरुद्ध लाया गया था, किन्तु वह पारित नहीं हो सका था।

~लोकसभा का अध्यक्ष, अध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं लेता, बल्कि सामान्य सदस्य के रूप में शपथ लेता है। 

~लोकसभा के भंग होने की स्थिति में अध्यक्ष अपना पद अगली लोकसभा की पहली बैठक होने तक रिक्त नहीं

करता।

~लोकसभा की अध्यक्षता अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष और उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति द्वारा 6 वरिष्ठ सदस्यों के पैनल में से कोई एक व्यक्ति करता है।

~मीरा कुमार पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष हैं।

लोकसभा अध्यक्ष का कार्य एवं शक्तियां (Parliament : संसद)

1. लोक सभा के भीतर व्यवस्था बनाये रखने की प्रक्रिया के नियमों का निर्वहन करने की अंतिम शक्ति अध्यक्ष को है। 

2. उसे विभिन्न विधेयक व प्रस्ताव पर मतदान करवाना व परिणाम घोषित करना तथा मतों की समानता की स्थिति में 

निर्णायक मत देने का अधिकार है।

3. लोकसभा की बैठक स्थगित या निलंबित करने का अधिकार अध्यक्ष को है।

4. दल-बदल विरोधी अधिनियम पालन करवाने का दायित्व भी उसी पर होता है।

5. वह सदन के सदस्यों के अधिकारों का संरक्षक होता है।

6. सदन के सदस्यों के प्रश्नों को स्वीकार करना, उसे नियमित करना व नियम के विरूद्ध घोषित करना अध्यक्ष का कार्य है। 

7. कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इस पर अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होता है। इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

8. लोकसभा एवं राष्ट्रपति के बीच सम्पर्क सूत्र के रूप में कार्य करता है।

9. वह विदेश जाने वाले संसदीय शिष्टमंडल के लिए सदस्यों का मनोनयन करता है।

Parliament : संसद

~लोकसभा अध्यक्ष का वेतन संचित निधि से मिलता है। 

~लोकसभा में विपक्ष के नेता को कैबिनेट स्तर के मंत्री के समान सभी सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

~लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर तथा प्रथम उपाध्यक्ष अनंत शयनम अययंगर थे।

~किसी संसद सदस्य की योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित प्रश्न का अन्तिम विनिश्चय चुनाव आयोग की सलाह से राष्ट्रपति करते हैं।

~संसद की कार्यवाही अंग्रेजी या हिन्दी में होगी लेकिन लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति किसी सदस्य को मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकते हैं।

~यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिनों की अवधि से अधिक समय के लिए लगातार सदन से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है।

~संसद सदस्यों को संसद की बैठक के पूर्व या बाद 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से मुक्ति प्रदान की गयी हैं। गिरफ्तारी से यह मुक्ति केवल सिविल मामलों में है। आपराधिक मामलों या निवारक निरोध विधि के अधीन गिरफ्तार से छूट नहीं है ।

~25 नवम्बर 2001 को सर्वदलीय राष्ट्रीय सम्मेलन में संसद एवं विधानसभाओं की मर्यादा बनाये रखने तथा इन सदनों में अनुशासनहीनता को रोकने के उद्देश्य से एक आचार संहिता का निर्माण किया गया।

संयुक्त अधिवेशन (Parliament : संसद)

~अनुच्छेद 108 में संसद के संयुक्त अधिवेशन की व्यवस्था है। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष करते हैं। संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति द्वारा निम्न परिस्थितियों में बुलाया जा सकता है- 

(1) विधेयक एक सदन से पारित होने के बाद यदि दूसरा सदन अस्वीकार कर दे। 

(2) विधेयक पर किए जाने वाले संशोध न के बारे में दोनों सदन अन्तिम रूप से असहमत हों। 

(3) एक सदन से पारित विधेयक को यदि दूसरा सदन 6 माह से अधिक दिनों तक रोक ले ।

~धन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक पर संयुक्त अधिवेशन नहीं बुलाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य विधेयक पर गतिरोध उत्पन्न होने की स्थिति में संयुक्त अधिवेशन बुलाया जा सकता है।

~अब तक तीन बार संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया है। ये हैं- दहेज प्रतिबंध विधेयक 1959, बैंकिंग सेवा आयोग 1977 तथा आतंकवाद निवारक अध्यादेश (पोटा) 20021

संसदीय समितियाँ (Parliament : संसद)

~संसद के कार्यों में विविधता तो हैं, साथ ही उसके पास काम की अधिकता भी रहती है। चूंकि उसके पास समय बहुत सीमित होता है, इसीलिए उसके समक्ष प्रस्तुत सभी विधायी या अन्य मामलों पर गहन विचार नहीं हो सकता है। अतः इसका बहुत-सा कार्य समितियों द्वारा किया जाता है। संसद के दोनों सदनों की समितियों की संरचना कुछ अपवादों को छोड़कर एक जैसी होती है।

~इन समितियों में नियुक्ति, कार्यकाल, कार्य एवं कार्य संचालन की प्रक्रिया कुल मिलाकर करीब एक जैसी ही है और यह संविधान के अनुच्छेद 118 (1) के अंतर्गत दोनों सदनों द्वारा निर्मित नियमों के तहत अधिनियमित होती है। सामान्यतः ये समितियाँ दो प्रकार की होती है – स्थायी और तदर्थ समितियाँ। स्थायी समितियाँ प्रतिवर्ष या समय-समय पर निर्वाचित या नियुक्त की जाती है और इनका कार्य कमोबेश निरंतर चलता रहता है।

~तदर्थ समितियों की नियुक्ति जरूरत पड़ने पर की जाती है तथा अपना काम पूरा कर लेने और अपनी रिपोर्ट पेश कर देने के बाद वे समाप्त हो जाती है।

Parliament : संसद

~स्थायी समितियाँ: लोकसभा की स्थायी समितियों में तीन वित्तीय, यानी लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति तथा सरकारी उपक्रम समिति का विशिष्ट स्थान है और ये सरकारी खर्च और निष्पादन पर लगातार नजर रखती हैं। लोक लेखा समिति तथा सरकारी उपक्रम समिति में राज्यसभा के सदस्य भी होते हैं, प्राक्कलन समिति के सभी सदस्य लोकसभा से होते हैं।

~प्राक्कलन समितिः यह बताती है कि प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप क्या मितव्यता बरती जा सकती हैं तथा संगठन, कार्यकुशलता और प्रशासन में क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं। यह इस बात की भी जांच करती है कि धन प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप ही व्यय किया गया है या नहीं। समिति इस बारे में भी जांच करती है कि धन प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप ही व्यय किया गया है या नहीं।

~समिति इस बारे में भी सुझाव देती है कि प्राक्कलन को संसद में किसी रूप में पेश किया जाए। लोकलेखा समिति भारत सरकार के विनियोग तथा वित्त लेखा और लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की जांच करती है। यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी धन संसद के निर्णयों के अनुरूप ही खर्च हो । यह अपव्यय, हानि और निरर्थक व्यय के मामलों की ओर ध्यान दिलाती है।

~सरकारी उपक्रम समिति नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की, यदि कोई रिपोर्ट हो, तो उसकी जांच करती है। वह इस बात की भी जांच करती है कि ये सरकारी उपक्रम कुशलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं या नहीं तथा इनका प्रबंध ठोस व्यापारिक सिद्धांतों और विवेकपूर्ण वाणिज्यिक प्रक्रियाओं के अनुसार किया जा रहा है या नहीं।

~इन तीन वित्तीय समितियों के अलावा, लोकसभा की नियमों के बारे में समिति ने विभागों से संबंधित 17 स्थायी समितियाँ गठित करने की सिफारिश की थी। इसके अनुसार 8 अप्रैल, 1993 को इन 17 समितियों को गठन किया गया। जुलाई 2004 में नियमों में संशोधन किया गया, ताकि ऐसी ही सात और समितियां गठित की जा सकें। इस प्रकार से इन समितियों की संख्या 24 हो गई हैं। 

Parliament : संसद

इन समितियों के निम्नलिखित कार्य हैं:- 

(क) भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के अनुदानों की मांग पर विचार करना और उसके बारे में सदन को सूचित करना; 

(ख) लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा समिति के पास भेजे गए ऐसे विधेयकों की जांच पड़ताल करना, और जैसा भी मामला हो, उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना; 

(ग) मंत्रालयों और विभागों की वार्षिक रिपोर्टों पर विचार करना तथा उसकी रिपोर्ट तैयार करना; और 

(घ) सदन में प्रस्तुत नीति संबंधी दस्तावेज, यदि लोकसभा के अध्यक्ष राज्यसभा द्वारा समिति के पास भेजे गए हैं, उन पर विचार करना और जैसा भी हो, उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना ।

Parliament : संसद

~प्रत्येक सदन में अन्य स्थायी समितियाँ, उनके कार्य के अनुसार इस प्रकार विभाजित हैं- 

(1) जांच समितियाँ- (क) याचिका समिति: विधेयकों और जनहित संबंधी मामलों पर प्रस्तुत याचिकाओं की जांच करती है और केंद्रीय विषयों पर प्राप्त प्रतिवेदनों पर विचार करती है; और 

(ख) विशेषाधिकार समितिः सदन या – अध्यक्ष / सभापति द्वारा भेजे गए विशेषाधिकार के किसी मामले की जांच करती है; 

(2) समीक्षा समितियाँ- (क) सरकारी आश्वासनों से संबंधी समिति : मंत्रियों द्वारा सदन में दिए गए आश्वासनों, वादों एवं संकल्पों पर उनके कार्यान्वित होने तक नजर रखती है; 

(ख) अधीनस्थ विधि निर्माण समितिः इस बात की जांच करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त विनियमों, नियमों, उप-नियमों तथा प्रदत्त शक्तियों का द्वारा उचित उपयोग किया जा रहा है; 

(ग) पटल पर रखे गए पत्रों संबंधी : वैधानिक अधिसूचनाओं और आदेशों के अलावा, जो कि अधीनस्थ विधान संबंधी के कार्य क्षेत्र में आते हैं, मंत्रियों द्वारा सदन के पटल पर रखे गए सभी कागजातों की जांच करती देखती है कि संविधान, अधिनियम, नियम या विनियम 9 के अंतर्गत कागजात प्रस्तुत करते हुए उनकी व्यवस्थाओं का पालन हुआ है या नहीं; 

(3) सदन के दैनिक कार्य से संबंधित समितियाँ – (क) कार्य मंत्रणा समितिः सदन में पेश किए जाने वाले सरकारी एवं अन्य कार्य के लिए समय निर्धारण की सिफारिश करती है;

(ख) गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा प्रस्तावों संबंधी लोकसभा की समितिः निजी सदस्यों द्वारा पेश गैर-सरकारी विधेयकों का वर्गीकरण एवं उनके लिए समय का निर्धारण करती है, निजी सदस्यों द्वारा पेश प्रस्तावों पर बहस के लिए समय का निर्धारण करती हैं और लोकसभा में निजी सदस्यों द्वारा पेश किए जाने से पूर्व संविधान संशोधन विधेयकों की जांच करती है। राज्यसभा में इस तरह की समिति नहीं होती। राज्यसभा की कार्यमंत्रणा समिति की गैर-सरकारी विधेयकों एवं प्रस्तावों के चरण या चरणों में बहस के लिए समय के निर्धारण की सिफारिश करती है ।

 (ग) नियम समितिः सदन में कार्यवधि और कार्यवाही के संचालन से संबंधित मामलों पर विचार करती है और नियमों में संशोधन या संयोजन की सिफारिश करती है, और 

(घ) सदन की बैठकों में अनुपस्थित सदस्यों संबंधी लोकसभा की समितिः सदन के सदस्यों की बैठकों से अनुपस्थिति या छुट्टी के आवेदनों पर विचार करती है। राज्यसभा में इस प्रकार की कोई समिति नहीं है। सदस्यों की छुट्टी या अनुपस्थिति के आवेदनों पर सदन स्वयं अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के विचार करता है; 

Parliament : संसद

(4) अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण की समिति- इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। यह केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में आने वाली अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी मामलों पर विचार करती है और इस बात पर नजर रखती है कि उन्हें संवैधानिक संरक्षण दिए गए हैं, वे ठीक से कार्यान्वित हो रहे हैं या नहीं, 

(5) सदस्यों को सुविधाएँ प्रदान करने संबंधी समितियाँ- (क) सामान्य प्रयोजन संबंधी: समिति सदन से संबंधित ऐसे मामलों पर विचार करती है, जो किसी अन्य संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते तथा अध्यक्ष/सभापति को इस बारे में सलाह देती है और 

(ख) आवास समितिः सदस्यों के लिए आवास तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करती है; 

(6) संसद सदस्यों के वेतन और भत्तों संबंधी संयुक्त समिति – यह संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन अधिनियम, 1954 के अंतर्गत गठित की गई है। संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन संबंधी नियम बनाने के अतिरिक्त, यह उनके चिकित्सा, आवास, टेलीफोन, डाक, निर्वाचन क्षेत्र एवं सचिवालय संबंधी सुविधाओं के संबंध में नियम बनाती है; 

(7) लाभ के पदों संबंधी संयुक्त समिति – यह केंद्र, राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा नियुक्त समतियों एवं अन्य निकायों की संरचना और स्वरूप की जांच करती है, और यह सिफारिश करती है कि कौन-कौन से पद ऐसे हों, जो संसद के किसी भी सदन की सदस्यता के लिए किसी व्यक्ति को योग्य अथवा अयोग्य बनाते हैं; 

(8) पुस्तकालय समिति – इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। यह संसद के पुस्तकालय से संबंधित मामलों पर विचार करती है, और 

(9) महिला अधिकारिता समिति – 29 अप्रैल, 1997 को महिलाओं के अधिकारों के बारे में दोनों सदनों के सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया। इसका उद्देश्य, अन्य बातों के साथ, सभी क्षेत्रों में महिलाओं को गरिमा और समानता प्रदान करता है। (10) 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा की आचार संहिता समिति गठित की गई। लोकसभा की आचार संहिता संबंधी समिति 16 मई, 2000 को गठित की गई।

Parliament : संसद

~तदर्थ समितियाँ: इस तरह की समितियों को मोटे रूप में दो शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है- (क) संसद के दोनों सदनों द्वारा अथवा / सभापति किसी विचाराधीन प्रस्ताव के स्वीकृति किए जाने या कोई विशिष्ट समय-समय पर गठित समितियाँ (उदाहरण के लिए संसदीय परिसर में खाद्य प्रबंधन पर समिति, संसदीय परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों के चित्रों / मूर्तियों की स्थापना पर समिति, एमपीलेड्स पर समिति और रेलवे कनवेंशन समिति, संसदीय परिसर की सुरक्षा संबंधी संयुक्त 

(ख) विशेष विधेयकों पर विचार करने एवं रिपोर्ट देने के लिए नियुक्त प्रवर एवं संयुक्त समितियाँ। जहां तक विधेयकों से संबंधित सवाल है, ये समितियाँ अन्य तदर्थ समितियों से भिन्न हैं और इनके द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया का उल्लेख अध्यक्ष / सभापति के निर्देश तथा प्रक्रिया संबंधी नियमों में किया जाता है। 

संसद में विपक्ष के नेता (Parliament : संसद)

~संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष के नेता की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राज्यसभा और लोकसभा में विपक्ष के नेताओं को वैधानिक मान्यता दी गई है। पहली नवंबर, 1977 से लागू एक पृथक कानून के अंतर्गत वेतन तथा कुछ अन्य उपयुक्त सुविधाएँ दी जाती हैं।

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