Judiciary : न्यायपालिका (Make Complete Notes Class 20) | UPSCSITE

Judiciary Complete Notes For UPSC & PCS : न्यायपालिका UPSC Prelims Notes (Make Complete Notes Class 19)

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Judiciary : न्यायपालिका

20. न्यायपालिका

सर्वोच्च न्यायालय (गठन अनुच्छेद-124)

~भारत की न्यायपालिका एकीकृत प्रकार की है, जिसके शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है। इन्हें अन्तिम न्याय निर्णयन का अधि कार प्राप्त है। यह दिल्ली में स्थित है।

~सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, गठन अधिकारिता, शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त हैं

~सर्वोच्च न्यायालय में कुल 31 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं 30 अन्य न्यायाधीश) होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

~सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।

~राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करता है, जिनसे परामर्श करना आवश्यक समझे। किन्तु 1993 के एक निर्णय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की सलाह को वरीयता प्रदान कर दी। उच्चतम न्यायालय के के मामले में मुख्य न्यायाधीशों को उच्चतम न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह से परामर्श करके ही राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजनी होती है।

Judiciary : न्यायपालिका

~उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है। एक बार नियुक्ति होने के बाद इनके अवकाश ग्रहण करने की आयु सीमा 65 वर्ष है।

~न्यायाधीश कभी भी राष्ट्रपति को अपना त्याग-पत्र सौंप सकता है।

~उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा विशेष बहुमत से पारित समावेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत किये जाने पर राष्ट्रपति उसे पद से हटा सकता है। उन्हें पद से हटाने के दो आधार हैं- साबित कदाचार एवं असमर्थता। ( अनुच्छेद 124 (4) )

~उच्चतम न्यायालय के एकमात्र न्यायाधीश आर रामास्वामी को पद से हटाने का प्रयास किया गया था, किन्तु कांग्रेस द्वारा मतदान में भाग न लेने के कारण प्रस्ताव पास नहीं हो सका था।

~अब तक उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के पद पर सबसे कम समय तक के. एन. सिंह ( मात्र 17 दिन) और सबसे अधिक दिन तक वाई. वी. चन्द्रचूड (7 वर्ष 170 दिन) रहे हैं।

~मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर दिल्ली के अतिरिक्त अन्य किसी भी स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय की बैठक बुला सकता है। अब तक हैदराबाद (1950) और श्रीनगर (1954) में इस प्रकार की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।

~अनुच्छेद 126 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश के पद रिक्त की स्थिति में राष्ट्रपति कार्यकारी न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है।

~उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत के किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकता है।

Judiciary : न्यायपालिका

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता

~वह भारत का नागरिक हो ।

~वह किसी उच्चतम न्यायालय में लगातार कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो।

~वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो । 

~राष्ट्रपति की राय में लब्धप्रतिष्ठ विधिवेता हो ।

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उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार

1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार ( अनुच्छेद-131 )- इसके अन्तर्गत ऐसे मामले आते हैं, जिनकी सुनवाई करने का अधिकार किसी उच्च न्यायालय या अधीनस्थ न्यायालयों को नहीं होता है। ये हैं- (1) भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों में। (2) भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्यों और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों में। (3) दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में, जिनमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित हो । प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के तहत सर्वोच्च न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमे किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार ( अनुच्छेद-132)- देश का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय हैं इसे भारत के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है। इसके अन्तर्गत निम्न प्रकरण आते हैं:- 1. संवैधानिक मामले, 2. दीवानी मामले, 3. अपराधिक मामले, 4. विशेष इजाजत से अपील।

3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार – अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति न्यायाधीश से परामर्श मांग सकता है। किन्तु यह परामर्श मांगने के लिए राष्ट्रपति बाध्य नहीं है और न ही न्यायाधीश परामर्श देने के लिए बाध्य है। रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के मामले में मुख्य न्यायाधीश एन.एन. वेंकट चेलैया की खंडपीठ ने राष्ट्रपति द्वारा मांगी गयी राय का कोई जवाब देने से इंकार कर दिया।

4. पुनर्विलोकन क्षेत्राधिकार ( अनुच्छेद 137)- उच्चतम न्यायालय को संसद या विधान मंडलों द्वारा पारित किसी अधिनियम तथा कार्यपालिका द्वारा दिये गये किसी आदेश की वैधानिकता का पुनर्विलोकन करने का अधिकार है।

5. अन्तरण का क्षेत्राधिकार- (1) वह उच्च न्यायालयों में लम्बित मामलों को अपने यहां अन्तरित कर सकता है। (2) वह किसी उच्च न्यायालय में लम्बित मामलों को दूसरे उच्च न्यायालय में अन्तरित कर सकता है।

6. अभिलेख न्यायालय (अनुच्छेद 129) – सामान्यतः अभिलेख न्यायालय से आशय उस उच्च न्यायालय से है, जिसके निर्णय सदा के लिए लेखबद्ध होते हैं और जिसके अभिलेखों का प्रमाणित मूल्य होता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अभिलेख न्यायालय का सभी शक्तियाँ प्राप्त हैं, जिनमें अवमानना के लिए दण्ड देना भी सम्मिलित है।

7. सर्वोच्च न्यायालय संविधान एवं मौलिक अधिकार का रक्षक है।

Judiciary : न्यायपालिका

उच्च न्यायालय

~अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा, लेकिन संसद विधि द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों और किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकता है। ( अनुच्छेद 231) । 

~वर्तमान में भारत में 21 उच्च न्यायालय हैं।

~प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों से मिलाकर किया जाता है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या अलग-अलग होती है।

~गुवाहाटी उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या सबसे कम ( मात्र 3) और इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों की संख्या सबसे अधिक (58) है।

~संघ राज्य क्षेत्रों में केवल दिल्ली में उच्च न्यायालय स्थापित है।

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उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएं (अनुच्छेद 217 )

1. भारत का नागरिक हो और 62 वर्ष की आयु पूरी न किया हो,

2. 3. कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो, 

3. कम से कम दस वर्ष तक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रहा हो ।

~अनुच्छेद 219 के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य, जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है, का राज्यपाल 17 उसके पद की शपथ दिलाता है।

~उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम आयु सीमा 62 वर्ष है, किन्तु वह अपने पद से किसी भी समय राष्ट्रपति को त्यागपत्र दे सकता है। यदि त्यागपत्र में उस तिथि का उल्लेख किया गया है, जिस तिथि को त्यागपत्र लाग होगा तो न्यायाधीश किसी भी समय अपना त्यागपत्र वापस ले सकता है।

~राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके किसी भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का स्थानान्तरण दूसरे उच्च न्यायालयों में कर सकता है। ( अनुच्छेद 222) 

~राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार किसी भी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकता है एवं आवश्यकतानुसार अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति भी कर सकता है।

~राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद को सौंप सकता है। जो व्यक्ति जिस उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है, वह उस न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता। किन्तु किसी दूसरे उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत कर सकता है (अनुच्छेद 220 ) । 

Judiciary : न्यायपालिका

उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार

1. अपीलीय क्षेत्राधिकार उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ सभी न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों के निर्णयों, आदेशों तथा डिग्रियों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है।

2. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार- उच्च न्यायालय को राजस्व तथा राजस्व संग्रह के संबंध में तथा मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामले में प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार है (अनुच्छेद 226 ) ।

3. अन्तरण सम्बंधी अधिकार- यदि किसी उच्च न्यायालय को ऐसा लगे कि जो अभियोग अधीनस्थ न्यायालय में विचाराधीन है, वह विधि के किसी सारगर्भित प्रश्न से संबद्ध है, तो वह उसे अपने यहां हस्तांतरित कर या तो उसका निपटारा स्वयं कर देता है या विधि से संबद्ध प्रश्न को निपटाकर अधीनस्थ न्यायालय को निर्णय के लिए वापस भेज देता है।

4. लेख जारी करने का अधिकार- यह मूलाधिकारों के उल्लंघन के मामले में बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकारपृच्छा लेख जारी कर सकता है (अनु. 226 ) । 

5. अधीक्षण क्षेत्राधिकार प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपनी अधिकारिता के अधीन स्थिति सभी न्यायालयों तथा अधिकरणों के अधीक्षण की शक्ति है जिसके प्रयोग से (1) वह ऐसे न्यायालयों/अधिकरणों से विवरणी मंगा सकता है। (2) वह ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली प्रविष्टियों और लेखाओं के प्रारूप निश्चित कर सकता है तथा (3) वह ऐसे न्यायालयों के शुल्कों को नियत कर सकता है।

6. प्रशासनिक अधिकार- उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्ति, पदावनति पदोन्नति तथा त्रुटियों के , संबंध में नियम बनाने का अधिकार हैं।

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अधीनस्थ न्यायालय ( अनुच्छेद 333 ) 

~उच्च न्यायालयों के अधीन कई श्रेणी के न्यायालय होते हैं, इन्हें संविधान में अधीनस्थ न्यायालय कहा गया है। इनका गठन राज्य अधिनियम कानून के आधार पर किया गया है। विभिन्न राज्यों में इनका अलग-अलग दर्जा है। लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में उनके संगठनात्मक ढांचे में समानता हैं

~जनहित याचिका – जनहित याचिका में जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं, शोषण, पर्यावरण, बालश्रम, स्त्रियों का शोषण आदि विषयों पर न्यायालय को किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा सूचित करने पर न्यायालय स्वयं उसकी जांच कराकर या वस्तुस्थिति को देखकर जनहित में निर्णय देता है। इस प्रकार के वाद सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय में ही प्रस्तुत किये जा सकते है।

~कुटुम्ब न्यायालय- कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम, 1984 के अधीन कुटुम्ब या पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना की गई। इस अधिनियम द्वारा न्यायालय को पारिवारिक विवादों में मैत्रीपूर्ण समझौता को बढ़ावा देने के लिए स्वविवेक का प्रयोग करने का अधिकार है। सर्वप्रथम पारिवारिक न्यायालय की स्थापना जयपुर में हुई।

Judiciary : न्यायपालिका

~प्रत्येक राज्य, जिलों में बंटा हुआ है और प्रत्येक जिले में एक जिला अदालत होती है। इन जिला अदालतों के अधीन कई निचली अदालतें होती हैं, जैसे अतिरिक्त जिला अदालत, सब- कोर्ट, मुंसिफ मजिस्ट्रेट अदालत, द्वितीय श्रेणी विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत, रेलवे के लिए विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत, कारखाना कानून और श्रम कानूनों के लिए विशेष मजिस्ट्रेट अदालत आदि ।

~संविधान के अनुच्छेद 233(1) के अनुसार किसी राज्य का राज्यपाल जिला न्यायाधीश की नियुक्ति संबंधित उच्च न्यायालय के परामर्श से करता हैं

~भारत में लोकहित अथवा जनहित याचिका को प्रारम्भ (1970 में) करने का श्रेय न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती और न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अययूर का रहा है।

~कानूनी सहायता अनुच्छेद 39 (ए) में सभी के लिए न्याय सुनिश्चित किया गया है और गरीबों तथा समाज के कमजोर वर्गों के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई है।

~राष्ट्रीय न्याय अकादमी- न्यायिक अधिकारियों को सेवा के दौरान प्रशिक्षण देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की स्थापना की है। इसका पंजीकरण 17 अगस्त 1993 को सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत हुआ है। यह अकादमी भोपाल में स्थित है, जिसका पंजीकृत कार्यालय, दिल्ली में है ।

~नालसा – नालसा देश भर में कानूनी सहायता कार्यक्रम और स्कीमें लागू करने के लिए राज्य कानूनी सेना प्राधिकरण पर दिशा-निर्देश जारी करता है।

~लोक अदालत – लोक अदालत कानूनी विवादों के मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए एक वैधानिक मंच है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 जिसका संशोधन 2002 में किया जा चुका है, द्वारा लोक उपयोगी सेवाओं के विवादों के सम्बंध में मुकदमेबाजी पूर्व सुलह और निर्धारण के लिए स्थायी लोक अदालतों की स्थापना के लिए प्रावधान करता है। 

~देश के लगभग सभी जिलों में स्थायी तथा सतत् लोक अदालतें स्थापित की गई हैं। देश में पहली लोक अदालत महाराष्ट्र में स्थापित की गई। ऐसे फौजदारी विवादों को छोड़कर समझौता नहीं किया जा सकता, दीवानी, फौजदारी, राजस्व अदालतों में लम्बित सभी कानूनी विवाद मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए लोक आदलत में ले जाए जा सकते हैं। लोक अदालत द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती।

~1 अप्रैल 2001 से फास्ट ट्रैक कोर्ट्स अस्तित्व में आये हैं।

~मोबाइल कोर्ट की स्थापना 20 नवम्बर 2008 को सर्वप्रथम कर्नाटक में लोगों को उनके दरवाजे पर न्याय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई।

~पर्यावरण सम्बंधी मामलों की सुनवाई के लिए एक नेशनल ग्रीन न्यायाधिकरण के गठन का प्रस्ताव केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जून 2009 में किया।

Judiciary : न्यायपालिका

~ग्राम न्यायालय- इसका उद्देश्य समाज के अंतिम आदमी को कम खर्चीला और प्रक्रियागत झंझटों से मुक्त शीघ्र न्याय दिलाना है, जिसकी संविधान के अनुच्छेद 38 (1) में व्यवस्था की गई है।

~ई-कोर्ट:- न्यायिक प्रक्रिया के आसान बनाने हेतु ई-कोई की अवधारणा लाई गयी है। देश का पहला ई-कोई गुजरात और अहमदाबाद सिटी सिविल एवं सेशन न्यायालय में स्थापित किया गया है। इसकी शुरूआत 8 फरवरी 2009 को देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालकृष्णन द्वारा किया गया। 

~ई-कोर्ट में आरोपी – वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायाधीश के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कर सकेंगे तथा बयान भी दे पाएंगे। इससे कारागार से न्यायालय तक ले जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। कारागार एवं पुलिस मुख्यालय के अतिरिक्त फोरेंसिक लेबोरेटरी को भी इस पहले ई-कोर्ट पेरियोजना में न्यायालय से ऑन लाइन संबंद्ध किया गया है।

~राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण- पर्यावरण संबंधी कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन व पर्यावरण के अधिकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अक्टूबर 2010 में अस्तित्व में आ गया। इसके गठन की अधिसूचना 18 अक्टूबर, 2010 को जारी की गई। इस हेतु आवश्यक विधेयक संसद के दोनों सदनों मई 2010 में पारित किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का अध्यक्ष दिसंबर 2012 में किया गया है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

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प्रशासनिक ट्रिब्युनल

~प्रशासनिक ट्रिब्युनल अधिनियम, 1985 का पारित होना पीड़ित सरकारी कर्मचारियों को न्याय दिलाने की दिशा में एक नया अध्याय था। 

~प्रशासनिक ट्रिब्युनल अधिनियम का स्रोत, संविधान का अनुच्छेद 323 (क) हैं, जो केंद्र सरकार को संसद के अधिनियम द्वारा ऐसे ट्रिब्युनल बनाने का अधिकार प्रदान करता है, जो केंद्र सरकार और राज्यों के कामकाज को चलाने के लिए सार्वजनिक पदों और सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों आदि से संबंधित शिकायतों और विवादों पर निर्णय दे सके। 

~अधिनियम 1985 के अंतर्गत स्थापित ट्रिब्युनल, इसके अंतर्गत आनेवाले कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों में मूल अधिकार क्षेत्र को प्रयोग करता है। 

~उच्चतम न्यायालय के दिनांक 18 मार्च 1997 के निर्णय के परिणामस्वरूप प्रशासनिक ट्रिब्यूलन के फैसले के विरूद्ध संबंधित – उच्च न्यायालय की खंडपीठ में अपील की जाएगी।

~प्रशासनिक ट्रिब्यूलन केवल अपने अधिकार क्षेत्र और कार्य विधि में आनेवाले कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों तक सीमित है। इसकी कार्यावधि कितनी सरल है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पीड़ित व्यक्ति इसके सामने स्वयं उपस्थित होकर अपने मामले की पैरवी कर सकता है। 

~सरकार अपना पक्ष अपने विभागीय अधिकारियों या वकीलों के जरिए रख सकती है। ट्रिब्युनल का उद्देश्य वादी को सस्ता और जल्दी न्याय दिलाना है।

~अधिनियम में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्युनल (CEntralk Adiminstration Trimunal) और राज्य प्रशासनिक ट्रिब्युनल स्थापित करने की व्यवस्था है। 

~सीएटी केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्युनल पहली नवंबर 1985 को स्थापित किया गया। आज इसकी 17 नियमित पीठ है, जिनमें से 15 उच्च न्यायालयों के मुख्य स्थान पर हैं और शेष दो जयपुर और लखनऊ में है। ये पीठ उच्च न्यायालयों वाले अन्य स्थानों पर सुनवाई करती हैं। 

~संक्षेप में ट्रिब्युनल में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और सदस्य होते हैं। ट्रिब्युनल के सदस्य न्यायिक और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों से लिए जाते हैं, ताकि ट्रिब्युनल को कानूनी और प्रशासनिक दोनों वर्गों की विशेषज्ञ जानकारी का लाभ मिल सके।

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न्यायिक जवाबदेही विधियेक

~न्यायाधीशों के विरूद्ध मामलों की जांच को अधिक प्रभावी प्रणाली बनाने के उद्देश्य से तैयार न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक को 29 मार्च, 2012 को लोकसभा की मंजूरी प्रदान की गई। न्यायिक जवाबदेही विधेयक में न्यायपालिका में व्यक्त भ्रष्टाचार से निपटरे की व्यवस्था है। न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक के कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:-

= न्यायाधीशों के लिए अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करना संवैधानिक रूप से अनिवार्य होगा। उसकी पत्नी और बच्चों पर भी यही बात लागू होगी।

= आम आदमी किसी भी न्यायाधीश की खराब व्यवहार के आधार पर शिकायत कर सकता है। इसके लिए राष्ट्रीय न्यायिक ओवरसाइट समिति, स्क्रूटनी पैनल और जांच समिति बनाना प्रस्तावित |

= समिति न्यायाधीशों को परामर्श या चेतावनी जारी कर सकती है। न्यायधीशों को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाया जा सकता है, जिस पर समिति विचार करेगी।

= राष्ट्रीय न्यायिक ओवरसाइट समिति में पांच सदस्य होंगे, जिनकी राष्ट्रपति करेंगे।

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