State Relations (भाग 11 & 12) : राज्य संबंध (Make Complete Notes Class 29, 30)

State Relations Complete Notes For UPSC & PCS : राज्य संबंध (Make Complete Notes Class 29, 30)

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State Relations (भाग 11 & 12) : राज्य संबंध

29. राज्य संबंध (भाग-11 एवं 12 और अनुच्छेद 245 से 293 तक)

भारत संघ के केंद्र-राज्य संबंध तीन वर्गो में वर्गीकृत किये गए हैं:-

1. विधायी संबंध (अनुच्छेद 245-255)- 

~भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र-राज्य की विधायी शक्तियों के बंटवारे से संबंधित तीन सूची दी गई है – 1. संघ सूची, 2. राज्य सूची और 3. समवर्ती सूची।

~इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी विषय हैं, जिनका उल्लेख संविधान की सातवीं अनुसूची में नहीं किया गया है। इन पर विधि निर्माण का अधिकार केवल संघ को दिया गया है। ये शक्तियाँ अवशिष्ट शक्तियाँ कहलाती है।

~अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्यसभा अपने दो-तिहाई बहुमत से किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे तो संसद उस विषय पर विधि बना सकेगी। लेकिन संघ की विधि मात्र एक वर्ष तक ही विधिमान्य रहेगी। इसे संसद हर बार एक वर्ष के लिए बढ़ा सकती है। संसद को अभी तक एक बार 1950 में यह शक्ति राज्य सभा ने प्रदान की है। इसका प्रयोग करके संसद ने व्यापार और वाणिज्य संबंधी कानून बनाया था। 

~अनुच्छेद 250 तहत आपातकाल के समय विधान मंडल की विधायी शक्ति संसद को हस्तांतरित हो जाती है। इस समय संसद द्वारा निर्मित विधि आपातकाल की समाप्ति के 6 मास बाद तक प्रभावी रहती है।

~अनुच्छेद 252 के तहत यदि दो या अधिक राज्य संसद के राज्य सूची के विषय पर विधि बनाने का अनुरोध करें, तो संसद ऐसा कर सकेगी। लेकिन संसद द्वारा निर्मित विधि केवल उन्हीं राज्यों पर लागू होगी जिन्होंने इसका अनुरोध किया था।

~अनुच्छेद 253 के अंतर्गत किसी विदेशी राज्य से हुई किसी संधि के अनुपालन में भी संसद राज्य सूची के विषय पर विधि बना सकती है।

2. प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256 से 263 तक )- 

~केंद्र का राज्य पर पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण होता है। इस नियंत्रण के मुख्य उपकरण राज्यपाल, अखिल भारतीय सेवा एवं विभिन्न प्रधिकरण हैं।

3. वित्तीय संबंध ( भाग -12 अनुच्छेद 264 से 291 तक) 

~संघ व राज्यों के मध्य राजस्व का विभाजन मूलत: 5 प्रकार से होता है-

~प्रथम श्रेणी में अनन्य रूप से संघ के राजस्व स्रोतों को रखा जा सकता है। ये कर संघ द्वारा लगाए व वसूल किये जाते हैं। इस राजस्व का प्रयोग संघ स्वयं करता है। 

~इसमें आने वाले प्रमुख कर हैं- सीमा शुल्क, विदेशी ऋण निगम कर, निर्यात शुल्क, आयकर पर अधिभार, रेल, रिजर्व बैंक, शेयर बाजार तथा कृषि भूमि छोड़कर अन्य संपत्ति पर संपदा शुल्क आदि । 

~दूसरी श्रेणी इसके अंतर्गत राज्यों द्वारा लगाए व वसूले जाने वाले करों को रखा जा सकता है। 

~इसके प्रमुख उदाहरण हैं-भू-राजस्व, विज्ञापन पर कर, उत्तराधिकार शुल्क, मनोरंजन कर, विक्रय कर, कृषि भूमि पर आय कर, खनिज कर, विद्युत के उपयोग पर कर, पथ कर, वाहन पर चुंगी, संपदा शुल्क आदि।

~तीसरी श्रेणी में ऐसे करों को रखा जा सकता है जो कि लगाए तो संघ द्वारा जाते हैं लेकिन इनको राज्य संग्रहीत करते हैं तथा प्रयोग करते हैं इस भाग में विनिमय पत्रों पर स्टांप शुल्क, औषधियाँ व श्रृंगार सामग्रियों पर उत्पाद शुल्क आदि आते हैं।

~चतुर्थ श्रेणी में उन करों को रखा जा सकता है जो कि लगाए व संग्रहीत तो संघ द्वारा किये जाते हैं, लेकिन प्राप्तियों को राज्यों के मध्य वितरित कर दिया जाता है। इस भाग में कृषि भूमि से भिन्न संपत्ति के उत्तराधिकारी के संबंध में शुल्क, कृषि भूमि से भिन्न संपत्ति के संबंध में संपदा-शुल्क. रेल भाड़ों और माल भाड़ों पर कर, समाचार-पत्रों के क्रय और उनमें प्रकाशित विज्ञापनों पर कर इत्यादि ।

~पांचवी श्रेणी में ऐसे कर आते हैं जो कि लगाए व संग्रहीत तो संघ के द्वारा किये जाते हैं, लेकिन इनको राज्य व केंद्र के मध्य वितरित कर दिया जाता हैं इस वर्ग में कृषि आय से

केंद्र और राज्य के संबंध पर आयोग

समिति/आयोगस्थापना वर्ष
प्रशासनिक सुधार आयोग (सीतलवाड़ी समिति)1966
राजमन्नार सहाय समिति1969
भगवान सहाय समिति
सहकारिया आयोग1983
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग2005
पूंजी आयोग 2007

~भिन्न आय पर कर उत्पाद शुल्क आदि आते है, परंतु राजस्व में बंटवारे के बाद भी राज्यों की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं रहती है।

30. योजना आयोग

~आर्थिक नियोजन के कार्य को भली प्रकार संपन्न करने के लिए 15 मार्च, 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव के द्वारा योजना आयोग की स्थापना की गई। 

~योजना अयोग एक गैर-संवैधानिक निकाय है। योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है तथा केंद्रीय गृहमंत्री, रक्षा मंत्री एवं वित्त मंत्री इसके अंशकालिक सदस्य होते हैं।

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