State Executive and Legislature : राज्य की कार्यपालिका एवं विधायिका (Make Complete Notes Class 28) | UPSCSITE

State Executive and Legislature Complete Notes For UPSC & PCS : राज्य की कार्यपालिका एवं विधायिका (Make Complete Notes Class 28)

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State Executive and Legislature : राज्य की कार्यपालिका एवं विधायिका

28. राज्य की कार्यपालिका व विधायिका

~संविधान के भाग 6 में राज्यों के शासन के लिए एक सी संरचना अधिकथित की गई है। किंतु जम्मू कश्मीर में यह शासन विधान कुछ अलग होगा।

राज्यपाल

~सभी राज्यों में कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल होता है और राज्य की समस्त कार्यवाही राज्यपाल के नाम से ही संचालित होती है। किंतु वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद के हाथों में होती है और राज्यपाल नाममात्र का प्रमुख होता है।

~व्यवहारतः प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है किंतु 7वें संविधान संशोधन के बाद अनुच्छेद 153 (2) के अनुसार एक ही व्यक्ति दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्ति किया जा सकता है।

~राज्यपाल की नियुक्ति पाँच वर्षों के लिए मंत्रिमंडल के सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है लेकिन वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत अपना पद धारण करता है।

राज्यपाल की योग्यता

~अनुच्छेद-157 के अनुसार निम्न योग्यताएँ हैं – (1) वह भारत का नागरिक हो, (2) उसकी आयु 35 वर्ष से अधिक हो (3) वह विधानसभा सदस्य चुने जाने योग्य हो, (4) किसी प्रकार के लाभ का पद धारण नहीं करता हो।

~अनुच्छेद 159 के अनुसार राज्यपाल अपने पद एवं गोपनीयता की शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के सम्मुख लेते हैं।

~राज्यपाल के स्थानांतरण का वर्णन मूल संविधान में नहीं है किंतु व्यवहार में इसका प्रचलन है। एक से अधिक बार भी व्यक्ति यह पद धारण कर सकता है।

State Executive and Legislature : राज्य की कार्यपालिका एवं विधायिका

कार्यपालिका संबंधी कार्य- (अनुच्छेद-154) 

~राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा मुख्यमंत्री की सलाह से उसके मंत्रिपरिषद् के सदस्यों को नियुक्त करता है तथा उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है।

~राज्यपाल के उच्च अधिकारियों, जैसे- महाधिवक्ता राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है तथा राज्य के उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को परामर्श देता है ( अनुच्छेद-127) 

~राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह राज्य के प्रशासन के संबंध में मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त करें। 

~जब राज्य का प्रशासन संवैधानिक तंत्र के अनुसार न चलाया जा सके, जो राज्यपाल राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफाशि करता है। राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाता है, तब राज्यपाल केंद्र सरकार के अभिकर्ता के रूप में राज्य का प्रशासन चलता है। 

~राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालय का कुलाधिपति होते हैं तथा उपकुलपति को भी नियुक्त करता है।

विधायी अधिकारी (अनुच्छेद-174) 

~राज्यपाल राज्य विधानमंडल का एक अभिन्न अंग है।

~वह राज्य विधान-मंडल के सत्र को आहूत कर सकता है, स्थगित कर सकता है तथा राज्य विधान सभा को भंग कर सकता है।

~यह विधानसभा में एक आंग्ल-भारतीय को मनोनीत करता है। 

~वह राज्य विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या के सदस्य के छठवें भाग के लिए सदस्यों, जिनका विज्ञान, साहित्य, कला, समाज सेवा, सहकारी आंदोलन आदि के क्षेत्र में विशेष ज्ञान, अनुभव या योगदान हो, को नियुक्त कर सकता है।

~यदि राज्य विधान सभा के किसी सदस्य की आयोग्यता का प्रश्न उत्पन्न होता है, तो आयोग्यता संबंधी विवाद का निर्धारण राज्यपाल चुनाव आयोग से परामर्श करके करता हैं। 

~राज्य विधान मंडल द्वारा पारित कोई भी विधेयक राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही अधिनियम बनता है।

~राज्यपाल धन विधेयक के अतिरिक्त किसी भी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानमंडल के पास भेज सकता है। किंतु विधान सभा द्वारा पुनः दोबारा उस विधेयक को पास कर दिया जाए तो राज्यपाल उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य है।

~राज्य विधान सभा में धन विधेयक राज्यपाल के अनुमोदन के बाद ही प्रस्तुत किया जाता है। 

~अनुच्छेद 201 के तहत राज्यपाल कुछ विधेयक को राष्ट्रपति कलिए आरक्षित रख सकता है।

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अध्यादेश जारी करने की शक्ति

~अनुच्छेद 213 के अनुसार विधान मंडल सत्र में न हो तथा राज्य सूची में वर्णित विषयों में से किसी विषय पर कानून बनना आवश्यक हो, तब राज्यपाल मंत्रिपरिषद् की सलाह पर अध्यादेश जारी कर सकता है। ऐसे अध्यादेश को 6 माह के भीतर विधानमंडल द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है। यदि विधानमंडल 6 माह के भीतर उसे अपनी स्वीकृति नहीं देता है, तो उस अध्यादेश की वैधता समाप्त हो जाती है।

वित्तीय अधिकार

~राज्यपाल राज्य के वित्तमंत्री के माध्यम से राज्य विधान सभा में राज्य का वार्षिक बजट पेश करता है ( अनुच्छेद-202)

~किसी प्रकार के अनुदान की मांग को या करों के प्रस्ताव को राज्यपाल के अनुमोदन से विधान सभा में पेश किया जाता है। 

~राज्य की आकस्मिक निधि से व्यय राज्यपाल की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है ( अनुच्छेद-203 (3)।

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न्यायिक अधिकार

~वह न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध किये गए अपराधियों को क्षमा करने, उनके दंड को कम करने या निलंबन करने या विलंबित करने की शक्ति रखता है, लेकिन इस शक्ति का प्रयोग उसके द्वारा उसी सीमा तक किया जा सकता है, जिस सीमा तक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है। (अनुच्छेद-161) 

राज्यपाल की उन्मुक्तियाँ तथा विशेषाधिकार

~वह अपने पद की शक्तियों के प्रयोग तथा कर्तव्यों के पालन के लिए किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है। 

~राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसके विरूद्ध किसी भी न्यायालय में किसी भी प्रकार की अपराधिक कार्यवाही नहीं प्रारंभ की जा सकती।

~जब वह पद पर आरूढ़ हो, तब उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी भी प्रकार से कोई आदेशिका जारी नहीं की जा सकती।

~राज्यपाल का पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात् उसके द्वारा व्यक्तिगत क्षमता से किए गए कार्य के संबंध में कोई सिविल कार्यवाही करने के पहले उसे दो मास पूर्व सूचना देनी पड़ती है।

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केंद्र सरकार के प्रतिनिधि

~राज्यपाल का भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में महत्वपूर्ण कार्य राज्य के संबंध में समय-समय पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना है, जिससे उसके द्वारा अपनी ओर से सुझाव भी दिए जाते हैं। राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट स्वविवेक से ही भेजता हैl

वैवेविक शक्तियाँ

~कुछ राज्यों में राज्यपाल अपनी इच्छा से शासन कर सकता है किंतु इसके लिए वह भारत के राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है । असोम के राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार वह रकम अवधारित करेगा जो असम राज्य खनिजों की अनुज्ञाप्तियों से उद्भूत होने वाले स्वामित्व के रूप में जिला परिषद् को देगा। 

~राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकता है कि महाराष्ट्र या गुजरात के राज्यपाल का राज्य के कुछ क्षेत्रों में विकास के लिए विशेष कदम उठाने का विशेष उत्तरदायित्व होगा, जैसे विदर्भ या सौराष्ट्रा, नागालैंड के राज्यपाल का उस राज्य में विधि या व्यवस्था की बाबत इसी प्रकार का उत्तरादायित्व जब तक है, उस राज्य में विद्रोही नागाओं के कारण आंतरिक बनी रहती है। 

~मणिपुर का राज्यपाल का उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों से मिलकर बनने वाली राज्य की विधानसभा की समिति का उचित कार्यकरण सुनिश्चित करना उसका विशेष उत्तरदायित्व होगा। 

~जब विधानसभा में चुनाव किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तब राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है जो विध कानसभा में अपना बहुमत सिद्ध कर सकता है।

State Executive and Legislature : राज्य की कार्यपालिका एवं विधायिका

मुख्यमंत्री

~उपराज्यपाल- दिल्ली, पांडीचेरी एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह | 

~प्रशासक- दादर एवं नगर हवेली, दमन एवं दीव और लक्षद्वीप। 

~मुख्य आयुक्त- चंडीगढ़ ।

~मुख्यमंत्री राज्य की कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान होता है। 

~अनुच्छेद 163 के अनुसार राज्यपाल द्वारा बहुमत दल के नेता को मुख्यमंत्री की शपथ दिलायी जाती है।

नोट:- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की मुख्यमंत्री की नियुक्ति चुनाव पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और मुख्यमंत्री राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है। 

मुख्यमंत्री के अधिकार एवं कर्तव्य

~मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद् को बैठक की अध्यक्षता करता है तथा सामूहिक उत्तरादायित्व के सिद्धांत का पालन करता है। 

~राज्य में असैनिक पदाधिकारियों के स्थानांतरण के आदेश मुख्यमंत्री के आदेश पर जारी किए जाते हैं। 

~वह राज्यपाल को राज्य के प्रशासन तथा विधायन संबंधी सभी प्रस्तावों की जानकारी देता है।

~वह राज्यपाल को विधान सभा भंग करने की सलाह है। 

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मंत्रिपरिषद् का गठन

~मुख्यमंत्री राज्यपाल की सहायता से मंत्रिपरिषद् का गठन करता हैं मंत्रिपरिषद् का कोई सदस्य यदि राज्य विधानसभा एवं विधान परिषद् का सदस्य न हो तो उसे 6 माह के अंदर दोनों सदन में से कोई एक सदन की सदस्यता ग्रहण करना पड़ता है, नहीं तो मंत्रिपरिषद् से उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।

मंत्रिपरिषद् का आकार

~91वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के तहत मंत्रिपरिषद का आकार मुख्यमंत्री सहित 15% से अधिक नहीं होगा, किंतु मंत्रिपरिषद् की न्यूनतम सीमा मुख्यमंत्री सहित 12 निर्धारित की गई है। 

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विधानपरिषद (अनुच्छेद-169)

~विधान परिषद राज्य विधान मंडल का उच्च सदन होता है। 

~वर्तमान में केवल 6 राज्यों – बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, महाराष्ट्र, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर और आंध्रप्रदेश में विधान परिषद विद्यमान है।

~यदि किसी राज्य की विधानसभा अपने कुल सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करे तो संसद उस राज्य में विधान परिषद् स्थापित कर सकती है अथवा उसका लोप कर सकती है। 

~विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 30 वर्ष है।

~विधान परिषद के कुल सदस्यों की संख्या उस राज्य की विधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या की एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, किंतु किसी भी अवस्था में विध ज्ञान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या जम्मू-कश्मीर ( 36 ) को छोड़कर 40 से कम नहीं हो सकती है।

~विधान परिषद एक स्थायी सदन है। इसके प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है किंतु प्रति दूसरे वर्ष एक-तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं। 

~विधान परिषद के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है।

विधान परिषद का गठन

1. एक तिहाई (1/3) सदस्य नगर पालिकाओं, जिला बोर्डी और अन्य स्थानीय प्राधिकारियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडलों द्वारा निर्वाचित होंगे।

2. एक-तिहाई (1/3) सदस्य राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से चुने जाएंगे, जो विधान सभा के सदस्य नहीं हैं।

3. 1/12 सदस्यों का निर्वाचन ऐसे व्यक्तियों द्वारा होगा जो किसी विश्वविद्यालय से कम से कम तीन वर्ष पूर्व से स्नातक है। 

4. 1/12 सदस्यों को निर्वाचन शिक्षकों के निर्वाचक मंडल द्वारा होगा। ये शिक्षक उस राज्य में किसी शिक्षण संस्था में तीन वर्ष से शैक्षणिक कार्य में लगे हुए हों। ये शिक्षा संस्थाएँ माध्यमिक पाठशाला से नीचे की न हों।

5. 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से मनोनीति होंगे जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाजसेवा का विशेष ज्ञान हो।

~विधान परिषद अपने सदस्यों में से सभापति एवं उपसभापति चुनती है। 

~सभापति, उपसभापति को और उपसभापति सभापति को कार्यकाल के मध्य में अपना इस्तीफा पत्र सौंप सकता है। साथ ही विधान परिषद् के सदस्य विशेष बहुमत द्वारा उसे अपदस्त भी कर सकता है, किंतु इस बात की सूचना उसे 14 दिन पूर्व देना होगा।

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विधान परिषद के कार्य

~धन विधेयक एवं वित्तीय विधेयक के अतिरिक्त कोई भी विधेयक विधान परिषद में प्रस्तुत किया जा सकता है।

~वित्तीय विधेयक के मामले में विधान परिषद को 14 दिन के अंदर अपनी सिफारिशों के साथ विधेयक को विधान सभा के पास वापस भेजना पड़ता है।

~साधारण विधेयक के पारित होने में विधान परिषद अधिक से अधिक 4 माह (3 माह पहली बार और एक माह दूसरी बार ) देर कर सकती है।

~विधान परिषद किसी विधेयक को समाप्त नहीं कर सकती।

विधान सभा

~विधान सभा राज्य विधानमंडल का निम्न सदन होता है। 

~अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य की विधान सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम संख्या 60 होगी । अपवाद – गोवा (40), अरूणाचल प्रदेश (40), मिजोरम (40) और सिक्किम (32) पांडिचेरी (30)। 

~राज्य विधान सभा का कार्यकाल प्रथम अधिवेशन से 5 वर्ष होता है।

~राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भंग किया जा सकता है परंतु यदि संकटकाल की घोषणा प्रवर्तन में हो तो संसद विधि द्वारा विधान सभा का कार्यकाल एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ा सकती है।

नोट- जम्मू-कश्मीर में विधान सभा का कार्यकाल प्रथम अधिवेशन से 6 वर्ष होता है। 

~विधान सभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 25 वर्ष है।

~विधान सभा एवं विधान परिषद की गणपूर्ति के लिए कुल सदस्य का 1/10 भाग सदस्य उपस्थित होना अनिवार्य है। विधान सभा अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष का चुनाव करती है।

~विधान सभा अध्यक्ष मत विभाजन की स्थिति में अपने मत का प्रयोग नहीं करता है, किंतु मतों की बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत देता है।

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विधान सभा की शक्तियाँ

1. विधायी शक्तियाँ- राज्य के विधानमंडल को सामान्यतया उन सभी विषयों पर कानून निर्माण की शक्ति प्राप्त है जो राज्य सूची में और समवर्ती सूची में दिए गए हैं, परंतु समवर्ती सूची के विषय पर राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि यदि केंद्र द्वारा उसी विषय पर निर्मित विधि के विरूद्ध हो, तो राज्य विधान मंडल द्वारा निर्मित विधि मान्य नहीं होगी।

2. वित्तीय शक्तियाँ (1) धन विधेयक केवल विधान सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। (2) कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इसका अंतिम विनिश्चय विधानसभा

अध्यक्ष ही करेगा। (3) वित्त मंत्री राज्यपाल के नाम से प्रत्येक वर्ष आय-व्यय का लेखा-जोखा (बजट) प्रस्तुत करता है। (4) विधानमंडल से विनियोग विधेयक पास होने पर ही सरकार संचित निधि से व्यय हेतु धन निकाल सकती है।

3. प्रशासनिक शक्तियाँ- ( 1 ) मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधान सभा के पति उत्तरदायी होता है। (2) विधान सभा या विधान परिषद के सदस्यों द्वारा मंत्रियों से उनके विभागों के संबंध में प्रश्न पूछे जा सकते हैं। मंत्रिमंडल के विरूद्ध निंदा या आलोचना का या काम रोको प्रस्ताव पास किया जा सकता है । ( 3 ) विधान सभा के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पास किया जा सकता है, जिसके कारण मंत्रिमंडल को पद त्याग करना पड़ता है।

4. संविधान के संशोधन की शक्ति- हमारे संविधान में कुछ प्रावधान ऐसे हैं, जिनमें संशोधन के लिए जरूरी है कि संसद द्वारा विशेष बहुमत के आधार पर पारित प्रस्ताव को कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा स्वीकार किया जाएगा।

5. निर्वाचन संबंधी शक्ति- राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य, राष्ट्रपति, राज्य सभा, राज्य विधान परिषद के सदस्यों आदि के निर्वाचन में भाग लेते हैं। 

~राज्य विधान मंडलों (विधान सभा एवं विधान परिषद्) का संयुक्त अधिवेशन बुलाने का कोई प्रावधान नहीं है।

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