Gupta Post Gupta Period Part 2 Quiz [20 Ques] : गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल प्रश्नोत्तरी | UPSCSITE

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नमस्कार दोस्तों, UPSC SITE आपके लिए लेकर आया है “प्राचीन भारत का इतिहास” Gupta Post Gupta Period Part 2 Quiz [20 Ques] : गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल प्रश्नोत्तरी – Objective Question Answer, जिनकी प्रैक्टिस आप ऑनलाइन कर सकते है। हमारे संग्रह टेस्ट्स को प्रैक्टिस करने के बाद आपको अपनी तैयारी में अंतर समझ आने लग जायेगा। क्यूंकि हमने यहां पर केवल उन्ही प्रश्नो को सम्मिलित किया है जो किसी न किसी परीक्षा में पहले पूछे जा चुके है। लगभग भारत की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न बार – बार दोहराये जाते रहें है।

Gupta Post Gupta Period Part 2 Quiz [20 Ques] : गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल प्रश्नोत्तरी

यहां टॉपिक वाइज प्रश्नोत्तरी दिए गए हैं जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले सभी एस्पिरेंट्स के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं लाभदायक साबित होने वाली है। यह “प्राचीन भारत का इतिहास” Gupta Post Gupta Period Part 2 Quiz [20 Ques] : गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल प्रश्नोत्तरी की टेस्ट सीरीज सभी एस्पिरेंट्स के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के पैटर्न के अनुसार स्मार्ट स्टडी करने में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होने वाली है।

1. निम्नलिखित कथनों को ध्यानपूर्वक पढ़िए- CGPCS (Pre) 2008

  1. गुप्त सम्राट स्वयं के लिए दैवीय अधिकारों का दावा करते थे। 
  2. उनका प्रशासन नितांत केंद्रीकृत था।
  3. उन्होंने भूमिदान की परंपरा को विस्तारित किया। 

उत्तर निम्न कूटों के आधार पर दीजिए-

  1. 1. 2 एवं 3 सही हैं।
  2. 1 एवं 2 सही हैं।
  3. 1 एवं 3 सही हैं।
  4. 2 एवं 3 सही हैं।

उत्तर – 3

गुप्त साम्राज्य की शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी। मौर्य शासकों के विपरीत गुप्तवंशी शासक अपनी दैवीय उत्पत्ति में विश्वास करते थे। गुप्त शासकों ने भूमिदान की परंपरा को विस्तारित किया। गुप्त प्रशासन का स्वरूप केंद्रीकृत न होकर संघात्मक था, गुप्त राजा अनेक छोटे राजाओं का राजा होता था। सामंत तथा प्रांतीय शासक अपने-अपने क्षेत्रों में नितांत स्वतंत्रता का अनुभव करते थे। इस प्रकार कथन 1 एवं 3 सही है. जबकि कथन 2 गलत है।

2. गुप्त काल के दौरान भारत में बलात् श्रम (विष्टि) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? IAS (Pre) 2019

  1. इसे राज्य के लिए आय का एक स्रोत, जनता द्वारा दिया जाने वाला एक प्रकार का कर, माना जाता था।
  2. यह गुप्त साम्राज्य के मध्य प्रदेश तथा काठियावाड़ क्षेत्रों में पूर्णतः अविद्यमान था।
  3. बलात् श्रमिक साप्ताहिक मजदूरी का हकदार होता था।
  4. मजदूर के ज्येष्ठ पुत्र को बलात् श्रमिक के रूप में भेज दिया जाता था।

उत्तर – 1

चंद्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि गुहालेख, प्रभावती गुप्ता के रिद्धपुर अभिलेख समेत अनेक गुप्तकालीन अभिलेखों में विष्टि (बेगार, बलात् श्रम) को अन्य करों के साथ रखा गया है। यद्यपि बेगार प्रथा का प्रमाण मौर्य युग से ही मिलता है, किंतु गुप्त काल में वह विभिन्न अवसरों पर राजा द्वारा प्राप्त किए जाने वाले कर का एक रूप बन गया था।

इसके तहत मजदूरों, शिल्पियों एवं कृषकों को अनिवार्य रूप से राजा या राज्य के लिए श्रम करना ही होता था, जिसके बदले उन्हें कोई भुगतान नहीं दिया जाता था।। यह प्रथा मध्य प्रदेश और काठियावाड़ में सबसे ज्यादा प्रचलित थी। बेगार की यह प्रथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती थी, किंतु इसमें ज्येष्ठ उत्तराधिकार जैसा नहीं था, यह सभी श्रमिकों पर लागू होती थी।

3. शूद्रक द्वारा लिखी हुई प्राचीन भारतीय पुस्तक ‘मृच्छकटिकम्’ का विषय था- I.A.S. (Pre) 2003

  1. एक धनी व्यापारी और एक गणिका की पुत्री की प्रेम गाथा 
  2. चंद्रगुप्त II की पश्चिम भारत के शक क्षत्रपों पर विजय
  3. समुद्रगुप्त के सैन्य अभियान तथा शौर्यपूर्ण कार्य 
  4. गुप्त राजवंश के एक राजा तथा कामरूप की राजकुमारी की प्रेम-गाथा

उत्तर – 1

शूदक कृत ‘मृच्छकटिकम्’ नामक रचना से गुप्तकालीन शासन व्यवस्था एवं नगर जीवन के विषय में रोचक सामग्री मिलती है। इससे तत्कालीन समाज में होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश पड़ता है। यथा- इससे पता चलता है कि उज्जयिनी में कुछ शूद्र अधिकारी थे, अब उन्हें महाकाव्यों एवं पुराणों के श्रवण का अधिकार भी मिल गया था। वस्तुतः इस ग्रंथ में चारुदत्त नामक ब्राह्मण सार्थवाह एवं एक गणिका की पुत्री वसंतसेना की प्रेम-गाथा को शब्दों का रूप दिया गया है।

4. भारत में दार्शनिक विचार के इतिहास के संबंध में, सांख्य संप्रदाय से संबंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए- I.A.S. (Pre) 2013

  1. सांख्य पुनर्जन्म या आत्मा के आवागमन के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है।
  2. सांख्य की मान्यता है कि आत्म-ज्ञान ही मोक्ष की ओर ले जाता है न कि कोई बाह्य प्रभाव अथवा कारक। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो और न ही 2

उत्तर – 2

सांख्य पुनर्जन्म अथवा आत्मा के आवागमन के सिद्धांत को स्वीकार करता है। सांख्य दर्शन में अज्ञानता को ही दुःखों का कारण तथा विवेक ज्ञान को उनसे मुक्ति का एकमात्र उपाय बताया गया है। अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

5. निम्नलिखित में से कौन एक ‘आष्टांग योग’ का अंश नहीं है? CGPCS (Pre) 2015

  1. अनुस्मृति
  2. प्रत्याहार
  3. ध्यान
  4. धारणा
  5. नमें से कोई नहीं

उत्तर – 1

महर्षि पतंजलि ने योग को ‘चित्त की वृत्तियों के निरोध’ (योग : चित्तवृत्ति निरोधः) के रूप में परिभाषित किया है। लगभग 200 ई.पू. महर्षि पतंजलि ने योग को लिखित रूप में संगृहीत किया और योग सूत्र की रचना की। योग-सूत्र की रचना के कारण पतंजलि को योग का जनक जाता है। उन्होंने योग के आठ अंग यथा- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन किया है। यही आष्टांग योग है। अतः स्पष्ट है कि अनुस्मृति आष्टांग योग का अंश नहीं है।

6. महाभाष्य के लेखक ‘पतंजलि’ समसामयिक थे- UPPCS (Pre) 2011

  1. चंद्रगुप्त मौर्य के
  2. अशोक के
  3. पुष्यमित्र शुंग के
  4. चद्रगुप्त प्रथम के

उत्तर – 3

महाभाष्य के लेखक पतंजलि शुंग वंश के संस्थापक शासक पुष्यमित्र शुंग (184-148 ई.पू.) के समकालीन थे।

7. केवल प्रत्यक्ष प्रमाण को कौन स्वीकार करता है? Chhattisgarh P.S.C. (Pre) 2018

  1. जैन
  2. चार्वाक
  3. बौद्ध
  4. सांख्य

उत्तर – 2

भारतीय दर्शन में विभिन्न संप्रदायों में प्रमाणों की संख्या के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। बौद्ध और वैशेषिक संप्रदाय प्रत्यक्ष तथा अनुमान केवल दो प्रमाणों को स्वीकार करते हैं। जैन, सांख्य, योग और विशिष्टाद्वैत दर्शन इन दोनों के साथ शब्द प्रमाण को भी जोड़ देते हैं। न्याय दार्शनिक प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द और उपमान चार प्रमाणों को स्वीकार करते हैं। प्रभाकर-मीमांसा में इन चारों प्रमाणों के साथ अर्थापत्ति को भी जोड़ दिया जाता है। भट्ट-मीमांसा और अद्वैत वेदांत दर्शन में इन प्रमाणों के साथ अनुपलब्धि को भी प्रमाण मान लिया जाता है। इन सबके विपरीत चार्वाक दर्शन केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता है और अन्य प्रमाणों का निषेध करता है।

8. अधोलिखित में से कौन एक चार्वाक के अनुसार सर्वोच्च मूल्य है ? Chhattisgarh P.S.C. (Pre) 2017

  1. धर्म
  2. अर्थ
  3. काम
  4. मोक्ष
  5. भक्ति

उत्तर – 3

चार्वाक दर्शन ने भारतीय परंपरा में स्वीकृत चारों पुरुषार्थों में काम को परम पुरुषार्थ माना है। इसके अनुसार जो कर्म काम की पूर्ति करें या मनुष्य को सुख प्रदान करे वही उचित हैं। चार्वाक के अनुसार, अर्थ सुख प्राप्ति का साधन है। उल्लेखनीय है कि चार्वाक दर्शन में सुख से तात्पर्य ऐंद्रिय सुख से है।

9. न्याय दर्शन को प्रचारित किया था- U.P.P.C.S. (Pre) 2005, U.P.P.C.S. (Mains) 2005

  1. चार्वाक ने 
  2. गौतम ने
  3. कपिल ने
  4. जैमिनी ने

उत्तर – 2

न्याय दर्शन का प्रवर्तन गौतम ने किया, जिन्हें ‘अक्षपाद’ भी कहा जाता है। न्याय का शाब्दिक अर्थ तर्क या निर्णय होता है। न्याय दर्शन में 16 पदार्थों या तत्वों का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। न्याय दर्शन का मूल ग्रंथ गौतम कृत ‘न्यायसूत्र’ है।

10. निम्न में से किस दर्शन का मत है कि वेद शाश्वत सत्य हैं ? Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2013

  1. सांख्य
  2. वैशेषिक
  3. मीमांसा
  4. न्याय
  5. योग

उत्तर – 3

मीमांसा दर्शन वेद को शाश्वत सत्य मानता है। पूर्व मीमांसा दर्शन में वेद के कर्मकांड भाग पर विचार किया गया है और उत्तर मीमांसा में वेद के | ज्ञानकांड भाग पर विचार किया गया है।

11. अपूर्व का सिद्धांत संबंधित है- Chhattisgarh P.S.C. (Pre) 2018

  1. चार्वाक से
  2. जैन से
  3. बौद्ध से
  4. मीमांसा से

उत्तर – 4

अपूर्व का सिद्धांत मीमांसा दर्शन से संबंधित है। मीमांसा दर्शन में एक अदृष्ट शक्ति की कल्पना की गई है, जो कर्म तथा उसके परिणाम के बीच एक अतिलौकिक कड़ी है। वह इसे ‘अपूर्व’ कहता है। अपूर्व का शाब्दिक अर्थ है ‘कोई नई वस्तु, जो पहले नहीं जानी गई अथवा वह जो पहले नहीं था।

12. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा एक भारतीय षड्दर्शन का भाग नहीं है? I.A.S. (Pre) 2014

  1. मीमांसा और वेदांत
  2. न्याय और वैशेषिक 12
  3. लोकायत और कापालिक
  4. सांख्य और योग

उत्तर – 3

‘मीमांसा और वेदांत’, ‘न्याय और वैशेषिक’ तथा ‘सांख्य और योग’ भारतीय षड्दर्शन के भाग हैं। वेदों को मान्यता देने के कारण ही सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत षड्दर्शन, आस्तिक दर्शन कहे जाते हैं। इनके प्रणेता क्रमशः कपिल, पतंजलि, गौतम, कणाद, जैमिनी तथा बादरायण थे, जबकि लोकायत और कापालिक भारतीय षड्दर्शन के भाग नहीं हैं।

13. लोकायत दर्शन किसको कहा जाता है? Chhattisgarh P.C.S. (Pre), 2019

  1. जैन
  2. बौद्ध
  3. चार्वाक
  4. सांख्य

उत्तर – 3

चार्वाक दर्शन को ही लोकायत दर्शन के नाम से जाना जाता है। यह भौतिकवादी दर्शन है, जो भौतिक या सांसारिक सुख को अधिक महत्व देता है।

14. अद्वैत दर्शन के संस्थापक हैं- Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2014

  1. शंकराचार्य
  2. रामानुजाचार्य
  3. मध्वाचार्य
  4. महात्मा बुद्ध
  5. इनमें से कोई नहीं

उत्तर – 1

अद्वैत दर्शन के संस्थापक शंकराचार्य हैं। शंकराचार्य ने ‘प्रस्थानत्रयी’ ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता) पर भाष्य लिखकर अद्वैतवाद का समर्थन किया। ब्रह्मसूत्र पर उनका भाष्य ‘ब्रह्मसूत्रभाष्य’ या ‘शारीरिकशास्त्र’ कहलाता है।

15. ‘प्रच्छन्न-बौद्ध’ किसे कहा जाता है? Chhattisgarh P.C.S. (Pre), 2019

  1. शंकर
  2. कपिल
  3. रामानुज
  4. पतंजलि

उत्तर – 1

शंकर या शंकराचार्य अद्वैत दर्शन के प्रणेता तथा हिंदू धर्म के प्रख्यात दार्शनिक थे। बौद्ध धर्म की कई संकल्पनाओं को अपने दर्शन में शामिल करने के कारण उन्हें ‘प्रच्छन्न-बौद्ध’ की संज्ञा दी जाती है।

16. निम्नलिखित में से अद्वैत वेदांत के अनुसार, किसके द्वारा मुक्ति प्राप्त की जा सकती है? Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2015

  1. ज्ञान
  2. कर्म
  3. भक्ति
  4. योग
  5. इनमें से कोई नहीं

उत्तर – 1

अद्वैत वेदांत में ज्ञानमार्ग को मोक्ष का साधन स्वीकार किया जाता है। उसकी मान्यता है कि केवल ज्ञान से ही मुक्ति मिलती है। (ज्ञानादेव मुक्तिः) । ज्ञान के अभाव में मुक्ति संभव नहीं है। उल्लेखनीय है कि अद्वैत वेदांत में सभी लोग ज्ञानमार्ग के अधिकारी नहीं हैं। ज्ञानमार्ग का अधिकारी केवल वही है, जो ‘साधनचतुष्टय’ (नित्यानित्यवस्तुविवेक, इहामुत्रार्थभोगविराग, शमदमादिसाधनसम्पत् एवं मुमुक्षुत्व) से युक्त है। जबकि विशिष्टाद्वैत दर्शन में भक्तिमार्ग को मोक्ष का साधन माना जाता है।

17. निम्न में से किसका संबंध ‘वेदांत दर्शन’ के साथ नहीं है? M.P.P.C.S. (Mains) 2014

  1. शंकराचार्य
  2. अभिनव गुप्त
  3. रामानुज
  4. माधव

उत्तर – 2

वेदांत दर्शन को भारतीय विचारधारा की पराकाष्ठा माना जाता है। वेदांत का शाब्दिक अर्थ है- ‘वेद का अंत’ या ‘वैदिक विचाराधारा की पराकाष्ठा । वेदांत दर्शन के तीन आधार हैं-उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता। इन्हें वेदांत दर्शन को ‘प्रस्थानत्रयी’ कहा जाता है। कई सूक्ष्म भेदों के आधार पर इसके कई उपसंप्रदाय एवं इनके प्रवर्तक हैं, जैसे-शंकराचार्य का अद्वैतवाद, रामानुज का विशिष्टाद्वैत, मध्वाचार्य का द्वैतवाद । अभिनव गुप्त की मुख्य ख्याति तंत्र तथा अलंकार शास्त्र के क्षेत्र में है। ये दर्शन के क्षेत्र में तर्कशास्त्र से जुड़े हुए थे।

18. ‘हर्षचरित’ नामक पुस्तक किसने लिखी ? 47th B.P.S.C. (Pre) 2005

  1. आर्यभट्ट
  2. बाणभट्ट
  3. विष्णुगुप्त
  4. परिमलगुप्त

उत्तर – 2

‘हर्षचरित’ ग्रंथ की रचना लेखक बाणभट्ट ने की थी। यह वर्द्धन वंश के इतिहास का प्रमुख स्रोत है। इसमें लेखक अपने समकालीन | शासक तथा उसके पूर्वजों के जीवनवृत्त का वर्णन प्रस्तुत करता है।

19. नर्मदा नदी पर सम्राट हर्ष के दक्षिणवर्ती अग्रगमन को रोका- I.A.S. (Pre) 2003

  1. पुलकेशिन I ने
  2. पुलकेशिन II ने
  3. विक्रमादित्य I ने
  4. विक्रमादित्य II ने

उत्तर – 2

हर्ष की विजयों के फलस्वरूप उसके राज्य की पश्चिमी सीमा नर्मदा नदी तक पहुंच गई। इधर पुलकेशिन II भी उत्तर की ओर राज्य का विस्तार करना चाहता था, ऐसी स्थिति में दोनों के बीच युद्ध अवश्यंभावी हो गया। फलतः नर्मदा के तट पर दोनों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें पुलकेशिन II ने हर्ष को पराजित किया। पुलकेशिन II की ऐहोल प्रशस्ति एवं ह्वेनसांग का विवरण इस युद्ध के साक्ष्य है।

20. चीनी यात्री जिसने भीनमाल की यात्रा की थी- R.A.S/R.T.S. (Pre) 2007

  1. फाह्यान
  2. सुंगयुन
  3. ह्वेनसांग
  4. इत्सिंग

उत्तर – 3

ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी। ह्वेनसांग चीनी यात्री था, जो हर्ष- वर्धन के समय में भारत आया था। इसे ‘यात्रियों का राजकुमार’ तथा इसके यात्रा विवरण को ‘सी-यू-की’ कहा जाता है। ह्वेनसांग बौद्ध था।

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Gupta Post Gupta Period Part 2 Quiz [20 Ques] : गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल प्रश्नोत्तरी

सामान्य ज्ञान भारतीय इतिहास Gupta Post Gupta Period Part 2 Quiz [20 Ques] : गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल प्रश्नोत्तरी में प्रश्नोत्तरी के रूप में सामान्य ज्ञान और सामान्य जागरूकता प्रश्न और उत्तर की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। ये भारतीय इतिहास मॉक टेस्ट उन सभी विषयों को कवर करते हैं जो सभी छात्रों के लिए किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

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